Uchchatan By Gangajal Mantra
In this post, I have described the method of Mastering and using an Uchchatan By Gangajal Mantra, which makes the use of the water of India’s Holy River Ganges as an infusion object to remove enemies from your life and surroundings and stop bothering you.
The Shabar Uchchatan Mantra given below has to be chanted continuously during the Grahan Kaal or the specific period of a Solar or Lunar Eclipse[full or partial] and on the day of the festival of Holi.
There are no fixed number of Mantra Chants or any special Mantra-Vidhi or procedure to be followed by the practitioner in order to perform the Siddhi Prayog. The Uchchatan Mantra is deemed to be Mastered when the practitioner is to remember it perfectly by heart.
To use the Uchchatan Mantra in order to remove an enemy from your path and put an end to problems related to that enemy, the practitioner should take some Ganga Jal in the palm of his right hand and chant the Uchchatan Mantra once with full concentration and then sprinkle the Ganga Jal on the body of the enemy.
The sprinkling of the Ganga Jal should be done in secret without the knowledge of the enemy.
Note- Such enemy removal or eradication Mantra Experiments should be practiced only under unavoidable circumstances when there are no options left otherwise the spell could rebound back on the practitioner.
The Shabar Uchchatan Mantra given below has to be chanted continuously during the Grahan Kaal or the specific period of a Solar or Lunar Eclipse[full or partial] and on the day of the festival of Holi.
There are no fixed number of Mantra Chants or any special Mantra-Vidhi or procedure to be followed by the practitioner in order to perform the Siddhi Prayog. The Uchchatan Mantra is deemed to be Mastered when the practitioner is to remember it perfectly by heart.
मंत्र
ॐ नमो चौसठ योगिनी बावान वीर | छपन भैरों, सत्तर पीर आय | बैठो डाल के बीच हाली हलै न चाली चलै | बाड़ शत्रु सो सिलैं डाल हलै चले | तो गोरखनाथ की दुहाई फुरे |
Mantra
Om Namo Chousath Yogini Baavan Veer | Chhapan Bhairon, Sattar Peer Aaya | Baitho Daal Ke Beech Haali Halai Na Chaali Chalai | Baad Shatru So Silaim Daal Halai Chale | To Gorakhnath Ki Duhai Fure |
The sprinkling of the Ganga Jal should be done in secret without the knowledge of the enemy.
Note- Such enemy removal or eradication Mantra Experiments should be practiced only under unavoidable circumstances when there are no options left otherwise the spell could rebound back on the practitioner.
इस साइट के पाठक उच्चाटन शब्द से भलीभाँति परिचित होंगे .
ReplyDeleteएक समय भवानी ने शिवजी से पूछा कि संसारी जीव वेदादि मंत्रो को जानते हुए भी दुखी क्यों रहते हैं .शिवजी ने उत्तर दिया कि मंत्र तंत्रों को जानते हुए भी उनकी सिद्धि का उपाय पूर्ण रूप से नही करते ,इसलिए सिद्धि नही मिलती .तब शिवजी ने सिद्धि और उपाय बताए-
(1)कर्म--कर्म 6 प्रकार के होते हैं-शान्तिकरण ,वशीकरण,स्तंभन,विद्वेषण,उच्चाटन,मारण (2).रोग,कृत्या और ग्रह आदि का निवारण शान्तिकरण है. मनुष्यों को वश मे कर लेना वशीकरण है .चलते हुए को रोकना स्तंभन है.परस्पर मित्रता वालों मे बैर उत्पन्न करना विद्वेषण है.एक स्थान से निकलकर कहीं दूर चले जाना उच्चाटन है .जीवधारियों के प्राण लेना मारण है.
(3)देवता --शांति कर्म की अधिष्ठा त्री देवी रति है .वशीकरण की सरस्वती, स्तंभन की लक्ष्मी,विद्वेषण की ज्येष्ठा ,उच्चाटन की दुर्गा,मारण की भद्रकाली है.
(4)दिशा--शांति कर्म मे ईशान ,वशीकरण मे उत्तर,स्तंभन मे पूर्व,विद्वेषण मे नैऋत्य,उच्चाटन मे वायव्य और मारण मे अग्नि दिशा मे मुख होना चाहिए .
(5)ऋतुविचार --सूर्योदय से लेकर प्रत्येक रातदिन मे दस दस घड़ी (चार घंटे)मे वसंत,ग्रीष्म,वर्षा,शरद,हेमंत,शिशिर सब ऋतु भोग जाया करती हैं .
(6)कर्तव्य कर्म--हेमंत ऋतु मे शांति कर्म,वसंत मे वशीकरण,शिशिर मे स्तंभन,ग्रीष्म मे विद्वेष ,वर्षा मे .
उच्चटन और शरद ऋतु मे मारण कर्म करना उचित है.
(7)काल विशेष--दुपहर पहले वशीकरण,मध्यान्ह मे विद्वेषण और उच्चाटन ,तीसरे पहर शांति कर्म और स्तंभन ,तथा सायंकाल मारण कर्म करे.
शिवजी आगे कहते हैं--
ReplyDeleteद्वितीया,तृतीया,पंचमी,सप्तमी को बुधवार,वृहस्पतिवार आए तो शांति कर्म करना चाहिए . शुक्ल पक्ष की चतुर्थी,शश्ठि,नवमी,त्रयोदशी को सोमवार ,वृहस्पतिवार आने पर वशीकरण कर्म प्रशस्त होता है.विद्वेशण मे शुकलपक्ष की अष्टमी,नवमी,दशमी,एकादशी को शुक्र या शनि का दिन हो,तो शुभ होता है.यदि कृष्णपक्ष की अष्टमी,चतुर्दशी को शनिवार हो तो फलसिद्धि के लिए उच्चाटन कर्म करना चाहिए .कृष्णपक्ष की अष्टमी,चतुर्दशी,अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा रवि,मंगल,शनिवार का दिन हो तो तो स्तंभन और मारण कर्म सिद्ध हो जाता है .
(10)आसन--शांति आदि षटकर्मो मे क्रमश:पद्मासन,स्वस्तिकासन,विकटासन,कुक्कुटासन,वज्रासन एवं भद्रासन का उपयोग करना चाहिए.
नोट--लेखनी,माला,होम,समिधा,श्रुवा,ब्राह्मणभोज आदि का भी विस्तृत वर्णन है, जिसकी यहाँ आवश्यकता नही है.साधक साइट मे दिए गए निर्देशो का पालन करें .
Respected Guruji, I am a very religious person and a physic by nature and wants to enter into the world of meditation of tantra - mantra. I want to learn tantra mantras and I want you to be my respected guru for this. Please show me the way how I can able to enter into the kingdoms of God Dev-devis, Yaksh-Yakshini etc. Guruji please feel free to contact in my email: mbaruah32@gmail.com. Bless me to go ahead.
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